विनय ने फ़ोन मुझसे छीना और कॉल काट दिया. अभी फ़ोन लगता हूँ उस हरामी को.”मैं: “नहीं, कोई जरुरत नहीं झगड़ा करने की.”बासुकी: “तुम झूठ तो नहीं नहीं बोल रही, बताओ फटे कपड़े.”मैं: “कपड़े नहीं फाड़े, छीना झपटी में ब्लाउज का हुक टूट गया था. हिंदी XXX कपड़े बदलने हैं तो मेरे सामने बदलो और फिर होली खेलो.”वो दरवाजे पर धक्का लगाते हुए अंदर आ गया. मगर वो तो उसका और भी साथ दे रहा था.विनय ने इतनी देर होली खेलते और नहलाते मुझे तैयार कर ही दिया था सिर्फ बासुकी का डर था, वो भी इजाजत मिल ही गयी थी. मैं फ़ोन उठा कर अपनी चूत के पास ले गयी और थोड़ी देर चुप हो कर उनको वो आवाजे सुनाने लगी.मैं अपनों आहें तो रोक नहीं पा रही थी तो फ़ोन फिर नीचे रख दिया और हम दोनों चीखते हुए चुदने के मजे लेते रहे. मुझे रिस्क नहीं लेना.”विनय: “मैं पहले झड़ने के बाद ही चला जाता तो? फिर मैंने महसूस किया फ़ोन से आती आवाज लगभग बंद हो गयी थी. जाओ.”विनय: “पिछली होली पर भी यही बोलकर कमरे में बंद हो गयी थी. हर साल होली पर रंग लगाते वक़्त ऐसी मस्ती करता था पर आज वो अकेला था तो उसने हद कर दी थी, मेरे कपड़े तक खोल दिए थे और अंदर हाथ डाल दिया था.मैं कई बार बिकिनी में उसकी
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भारतीय गृहिणी का गुदा मैथुन और वीर्यपान
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