मा और चाची फूफा से बहुत मज़ाक करती, लेकिन फूफा कभी बुरा नही मानते थे वो भी लगे हाथ मज़ाक कर लेते.चाची फूफा के एक दम पास खड़ी थी, उनके आगे बहुत साड़ी गाओं की औरते और मर्द खड़े थे, जिसकी वजह से चाची को मंडप नही दिख रहा था वो बार बार लोगो के उपर से देखने की कोसिस कर रही थी पर कुछ भी ठीक से नही दिख रहा था, फूफा ने कहा “प्रिया जी आप मेरे पास खड़े हो जाइए, शायद यहाँ आप को दिखेगा.”चाची उन्हे पास खड़ी हो गयी और फूफा ने एक दो लोगो को थोड़ा हटने को कहा अब वहाँ से चाची को कुछ साफ दिख रहा था पर चाची फूफा से काफ़ी चिपकी हुई थी उनकी चूतर फूफा के हाथ को छू रही थी, क्यूँ की वनहा पर काफ़ी भीड़ थी और सब लोग मंडप मे तिलक देखने के लिए बेताब थे और सबकी नज़र मंडप पर थी.चाची: “सुक्रिया, मनीष जी.”फूफा: “अरे इसमे सुक्रिया की क्या बात है, आप कहे तो आप को उठा लू.”चाची: “माधुरी तो उठती नही, हमे क्या उठाएँगे.”फूफा: “क्यूँ..आप क्या माधुरी से भी भारी है.”चाची ने कुछ जवाब नही दिया और मुस्कुराने लगी, फिर फूफा की शरारत सुरू हुई वो धीरे धीरे चाची के पीछे आगाये, पर फूफा लंबे थे इसीलये वो उनका लंड चाची के चूतर के उपर था, चाची
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