वो तो अभी तक शुरू भी नहीं हुई थी की शाहिद का खेल खतम हो गया। शाहिद बगल में हो गया और करवट बदलकर सो गया।शाजिया अपनी प्यासी चूत लिए रात भर करवट इधर से उधर बदलती रहीं। दिन में शाजिया फिर से दोपहर का इंतजार कर रही थी। अब उसके मन में कोई वंद नहीं चल रहा था। उसने खुद को समझा लिया था की शंभू कई सालों से अकेला है और मैंने उसकी सोई ख्वाहिशों को जगा दिया है, जिसे वो छिपकर मेरी पैंटी ब्रा पे उतारता है।मुझे उससे उसकी खुशी नहीं छीननी है और मैं उसके वीर्य को सूँघकर चाटकर खुश हो रही हूँ। उसे नहीं पता की मुझे पता है तो दोनों अपना-अपना मजा ले रहे हैं और इसमें कुछ भी गलत नहीं है। वो अपने वक़्त पे एक बजे से कुछ पहले स्टोररूम में जाकर छिप गई। शंभू आया और आते वक़्त ही शाजिया की पैंटी ब्रा को देखता गया, जिसे शाजिया ने आज और अच्छे से फैलाया हुआ था।शाजिया चाहती थी की शंभू को जो सुख मिल रहा है वो अच्छे से मिले। उसने ट्रांसपेरेंट पैंटी ब्रा को छत पे टंगा था। रोज की तरह शंभू रूम से लुंगी गंजी में आया और शाजिया की पैंटी ब्रा को उठाकर स्टोररूम के दरवाजा के सामने खड़ा हो गया। आज शाजिया कल की तरह तेज सांस नहीं ले
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